बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 समाजशास्त्र बीए सेमेस्टर-3 समाजशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 समाजशास्त्र
प्रश्न- भारत में सामाजिक परिवर्तन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी कीजिये। -
उत्तर -
भारत में सामाजिक परिवर्तन भारत में सामाजिक परिवर्तन का श्रेय दो तत्वों को है -
(1) पश्चिमी प्रौद्योगिकी तथा विज्ञान का भारत में प्रादुर्भाव,
(2) सामाजिक नियोजन।
रहन-सहन की दशा में सुधार तथा चिकित्साशास्त्र में विकास के कारण जनसंख्या की दर में तीव्र गति से परिवर्तन हुआ है। पूँजीवादी उद्योगों की स्थापना के कारण सम्पत्ति व्यवस्था में भी परिवर्तन - आया है। श्रम विभाजन के परिणामस्वरूप एक ही साथ काम करने वालों के वर्ग में, जिसे "पेशा वर्ग" का नाम दिया जा सकता है, हमारी राजनीतिक व्यवस्था को भी प्रभावित किया है। औद्योगीकरण का प्रभाव हमारी संयुक्त परिवार प्रणाली, विवाह - प्रणाली, जाति व्यवस्था तथा विभिन्न प्रथाओं और परम्पराओं पर पड़ा है। प्रौद्योगिकी के विकास के फलस्वरूप अवतरित नई संस्कृति और परम्परागत पुरानी संस्कृति में संघर्ष शुरू हो गया है। भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद ने यहाँ के शासकीय, प्रशासनिक न्यायिक तथा सांस्कृतिक मूल्यों में आमूलचूल परिवर्तन किया है। सांस्कृतिक विलम्बन का महत्व भारतीय समाज के लिए अधिक है 1
आधुनिक पूँजीवादी व्यवस्था के कारण परम्परागत भारतीय संस्कृति का महत्व कम हो गया है। यह नहीं कहा जा सकता है कि भारतीय समाज की परम्परागत संस्थाओं में परिवर्तन पूँजीवादी या समाजवादी सामाजिक व्यवस्था के लिए है, बल्कि ऐसा शायद इसलिए हो रहा है कि इन संस्थाओं में आधुनिक समाज के योग्य आवश्यक गुण नहीं है। सामाजिक गतिशीलता, जिसका प्रमुख कारण परिवहन के साधनों का विस्तार है, के कारण अब परिवार के असंख्य सदस्यों को एक ही स्थान पर बाँधकर नहीं रखा जा सकता। जाति-व्यवस्था में परिवर्तन का शायद यही कारण है। हमारे पुराने सामाजिक मूल्यों के ऊपर प्रौद्योगिकी और धर्मनिरपेक्षता का प्रभाव पड़ा है। भारतीय समाज में आज के युवक और युवती परम्परागत जाति व्यवस्था और विवाह व्यवस्था को नहीं चाहते हैं, फिर भी ऐसा देखा जाता है कि वे परम्परागत व्यवहारों को ही करते हैं। यदि वे ऐसा नहीं करते तो उन्हें अपने जीविकोपार्जन के लिए अलग रास्ता ढूढना होगा, जिसके लिए सभी समर्थ नहीं हैं। सामाजिक संगठन में जिन लोगों को उच्च सामाजिक प्रस्थिति प्राप्त है, जैसे- ब्राह्मण या क्षत्रिय, वे लोग किसी भी ऐसे अधिकार या व्यवस्था का विरोध करते हैं जो उनकी महत्ता को कम करता है। सामाजिक नियोजन के द्वारा समाज में कुछ मूलभूत परिवर्तन हो रहे हैं, क्योंकि नियोजन का प्रारम्भ सामाजिक आवश्यकताओं को देखते हुए किया गया है। भारत का 1950 का संविधान एक नये प्रकार की राजनीतिक तथा सामाजिक व्यवस्था का सूचक है, जिसमें समाज के सभी व्यक्तियों को समानता के अधिकार प्राप्त होंगे।
ग्रामीण समुदाय के लोग नियोजन के कार्यक्रमों द्वारा उन्नत किस्म के बीजों, खाद तथा अच्छी नस्ल के जानवरों को बड़ी खुशी के साथ अपना रहे हैं। नये-नये प्रकार के खेती के औजार, सहयोगिता को महत्व तथा उनका प्रयोग, सामूहिक खेती आदि धारणाओं को कार्यान्वित किया जा रहा है, यद्यपि इस प्रकार के प्रयोग की गति अभी धीमी है। सरकारी अभिकरण तथा ग्राम के व्यक्तियों में सीधा सम्बन्ध होने के कारण नियोजन प्रभावकारी कार्य कर रहा है। इस प्रकार के कार्यों से आर्थिक परिवर्तन को भी दिशा प्रदान की जा रही है। भारत में प्रौद्योगिकी विकास, कृषि विकास के अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के गुप्त परिवर्तन तीव्र गति से हो रहे हैं जिनका समाधान आवश्यक है। ब्रिटिश शासनकाल में ही भारतीय संस्कृति, जैसे - खान-पान, रहन-सहन, भाषा धर्म आदि पर पश्चिमी समाजों का प्रभाव पड़ा, जिसके कारण सामाजिक परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त हुआ।
ब्रिटिश शासन काल में सेना, पुलिस, रेल, डाक, तार सार्वजनिक निर्माण विभाग, शिक्षा संस्थाएँ आदि को एक नया रूप देकर समाज की सामाजिक व्यवस्था को प्रभावित किया। भारत में छापे का विकास अंग्रेजों के शासनकाल में ही हुआ, जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न प्रकार के साहित्यों का निर्माण तेजी से होने लगा। विभिन्न भाषाओं में दैनिक समाचार-पत्र छपने लगे, जिनके द्वारा समाज के बारे में सूचना प्रसारित की जाती थी। सामाजिक सम्पर्कों का विस्तार बढ़ा और इस प्रकार विभिन्न प्रकार के विचारों के आदान-प्रदान के परिणामस्वरूप परम्परागत सामाजिक व्यवस्था प्रभावित हुई और उसमें परिवर्तन आने लगे। वेदों का पठन-पाठन, सामाजिक व्यवहार तथा आचरण के तरीके केवल "चारण" या ब्राह्मणी के हाथ में न रहकर समाज के अन्य व्यक्तियों से भी प्रभावित होने लगे। इस प्रकार ब्रिटिश शासन व्यवस्था के परिणामस्वरूप भारतीय समाज पर दो क्रान्तिकारी प्रभाव पड़े।
(1) समानता के सिद्धान्त का प्रचार।
(2) अपने अधिकारों के प्रति चेतना।
अंग्रेजी शासन अपने साथ भारतीय सामाजिक जीवन और संस्कृति के लौकिकीकरण की प्रक्रिया लाया। यह प्रवृत्ति संचार के साधनों के विकास, कस्बों और नगरों की वृद्धि, बढ़ी हुई अस्थानमूलक गतिशीलता और शिक्षा के प्रसार के साथ-साथ और भी प्रबल हो गयी। दोनों महायुद्धों और महात्मा गाँधी के नागरिक अवज्ञा आन्दोलनों ने जनसाधारण को राजनीतिक तथा सामाजिक दृष्टि से सक्रिय तो किया ही, धर्म निरपेक्षीकरण की वृद्धि में भी योग दिया। स्वतन्त्रता प्राप्ति के साथ ध धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया और तीव्र हो गयी, जैसे- धर्मनिरपेक्ष राज्य की घोषणा, सभी नागरिकों को समान अधिकार, सार्वजनिक वयस्क मताधिकार और योजनाबद्ध विकास के कार्यक्रमों का प्रारम्भ आदि। इन सभी कारणों से हमारे सामाजिक सम्बन्धों में मूलभूत परिवर्तन हो रहे हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि परम्परागत भारतीय संस्थाओं में परिवर्तन, जिसके परिणामस्वरूप सामाजिक परिवर्तन हो रहा है, औद्योगीकरण पश्चिमीकरण और धर्मनिरपेक्षीकरण का ही प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष प्रभाव है। भारत में सामाजिक परिवर्तन को अग्र प्रकार से विश्लेषित किया जा सकता है।
(1) सामाजिक संरचना में परिवर्तन - समकालीन भारतीय समाज बहुत तेजी से बदल रहा है। ये परिवर्तन समाज की संरचना एवं उसके प्रकार्य दोनों परिलक्षित हो रहे हैं। भारतीय समाज में सामाजिक संस्थाएँ एवं मूल्य तेजी से बदल रहे हैं। इस परिवर्तन का सबसे अधिक प्रभाव हिन्दुओं पर पड़ेगा, जिनकी जीवन शैली तीन सामाजिक संस्थाओं, जैसे जाति, संयुक्त परिवार तथा ग्रामीण समुदाय पर निर्भर करती है एवं इन तीनों ही संस्थाओं में तीव्र गति से परिवर्तन हो रहा है। परम्परागत भारतीय समाज की सामाजिक संरचना में व्यक्ति की सामाजिक प्रस्थिति उसके जन्म और वंश से निध रित होती थी। सामाजिक स्तरीकरण की व्यवस्था पूरी तरह से बन्द थी, परन्तु आज के परिवेश में इसमें तेजी से परिवर्तन हुआ है और सामाजिक स्तरीकरण की जगह खुला सामाजिक स्तरीकरण विकसित हुआ है। इस प्रकार व्यक्ति की सामाजिक प्रस्थिति का निर्धारण उसकी योग्यता, कुशलता और आर्थिक सफलता के आधार पर होने लगा, चाहे वह किसी भी जाति, वंश लिंग अथवा धर्म से सम्बन्धित हों।
भारत में स्वतन्त्रता के पूर्व तक हमारा समाज जमींदार और किसान, मालिक और मजदूर अथवा पूँजीपति और श्रमिक जैसे दो वर्गों में विभाजित था। एक वर्ग सभी तरह के साधन एवं अधिकारों से सम्पन्न था जबकि दूसरा वर्ग सभी तरह की सुविधाओं से वंचित था। स्वतन्त्रता के पश्चात् नवीन आर्थिक योजनाओं के परिणामस्वरूप अनेक नवीन व्यवसाय आरम्भ हुए एवं नवीन प्रशासनिक व्यवस्था में कर्मचारी तन्त्र का विकास होने लगा। तत्पश्चात समाज में मध्यम वर्ग का अविर्भाव हुआ। आज के समाज में मध्यम वर्ग सबसे शक्तिशाली वर्ग है। अधिक सजगता के कारण आर्थिक व्यवस्था, राजनीति तथा सामाजिक व्यवस्था को प्रभावित करने में इसकी भूमिका सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। इस प्रकार वर्ग संरचना में होने वाले परिवर्तन को स्पष्ट करता है।
(2) सामाजिक संस्थाओं में परिवर्तन - भारतीय समाज में परिवार, विवाह नातेदारी, धर्म, शिक्षा तथा मनोरंजन इत्यादि ऐसी सामाजिक संस्थाएँ हैं जिनके अनुसार ही सामाजिक व्यवस्था को एक विशेष स्वरूप मिलता है। वर्तमान परिवेश में घटित हो रहें परिवर्तनों को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है।
कुछ समय पहले तक परिवार द्वारा ही बच्चों का पालन-पोषण करने, शिक्षा देने और मनोरंजन प्रदान करने का कार्य किया जाता था। आज परिवार के ये सभी कार्य अन्य संस्थाओं, जैसे विद्यालय और विभिन्न मनोरंजन केन्द्रों को हस्तान्तरित हो गये हैं।
भारतीय समाज में बहुत लम्बे समय तक विवाह को एक धार्मिक संस्कार और दो परिवारों के सम्बन्ध में देखा जाता रहा है। परम्परागत रूप से समाज में बाल-विवाह, दहेज प्रथा, विवाह विच्छेद पर प्रतिबन्ध, विधवा पुनर्विवाह पर नियन्त्रण तथा अन्तर्जातीय विवाहों के निषेध को प्रमुख वैवाहिक नियमों के रूप में देखा जाता था। वर्तमान में विवाह की इन मान्यताओं में तीव्र गति से परिवर्तन होने लगा है। घरेलू हिंसा सम्बन्धी कानूनों के कारण महिलाओं का शोषण अब सम्भव नहीं है। भारतीय समाज में धर्म एक संस्था के रूप में व्यक्तियों के व्यवहारों पर नियन्त्रण रखने का सबसे प्रभावशाली साधन नहीं रहा। भारतीय समाज के आर्थिक विकास में व्यावसायिक शिक्षा का महत्व बढ़ने लगा। वर्तमान परिवेश में परम्परागत मनोरंजन का स्थान मनोरंजन के व्यावसायिक साधनों ने ले लिया है।
(3) सामाजिक मूल्यों एवं मनोवृत्तियों में परिवर्तन - जब भी सामाजिक मूल्य बदलने लगते हैं- तब हमारे सामाजिक सम्बन्धों में भी परिवर्तन होने लगता है। इसी स्थिति को हम सामाजिक परिवर्तन कहते हैं। आज कर्मकाण्डों से सम्बन्धित विश्वास इतने कमजोर पड़ने लगे हैं कि अधिकांश व्यक्ति इन्हें पूरा करना उचित नहीं समझते। इस प्रकार स्पष्ट है कि मूल्यों और मनोवृत्तियों में घटित होने वाले परिवर्तन से निश्चय ही भारतीय समाज में व्यापक रूप से बदलाव हो रहा है।
(4) लोकतान्त्रिक संरचना तथा सामाजिक परिवर्तन - भारतीय समाज में सामाजिक परिवर्तन की प्रकृति को समझने के लिए इसका लोकतान्त्रिक संरचना से सम्बन्ध जानना आवश्यक है। भारत में वैदिक काल से लेकर स्वतन्त्रता से पहले तक हमारा समाज बहुत से निरंकुश सम्राटों तथा राजाओं के अधीन रहा, जो हमेशा संघर्षरत थे। आज से लगभग दो हजार वर्ष पहले मौर्यकालीन तथा गुप्तकालीन समाज के अन्दर भी जाति की समानतावादी नीतियों के आधार पर सामाजिक व्यवस्था को एक विशेष रूप दिया जाता रहा। ब्रिटिश शासन व्यवस्था में अंग्रेजों ने यहाँ के सामाजिक और सांस्कृतिक विभेदों को अपने लिए उपयोगी मानते हुए इनमें किसी तरह का बदलाव नहीं लाना चाहा। जब भारत स्वतन्त्र हुआ तो पहली बार यहाँ एक संगठित और प्रभुत्ता संपन्न राष्ट्र की स्थापना हुई। एक राष्ट्र के रूप में भारत को एक लोकतान्त्रिक, धर्मनिरपेक्ष और कल्याण राज्य घोषित किया गया। लोकतान्त्रिक व्यवस्था में समाज के प्रत्येक वर्ग की भागीदारी बढ़ाने के लिए एक-दूसरे से भिन्न विचारधारा वाले राजनैतिक दलों को मान्यता दी गयी। भारत की राजनैतिक संरचना में होने वाले इस परिवर्तन में भारत ने सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया को बहुत तीव्र कर दिया।
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- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का क्या अर्थ है? सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख कारकों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के भौगोलिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जैवकीय कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के राजनैतिक तथा सेना सम्बन्धी कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में महापुरुषों की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्रौद्योगिकीय कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विचाराधारा सम्बन्धी कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सांस्कृतिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के मनोवैज्ञानिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की परिभाषा बताते हुए इसकी विशेषताएं लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की प्रमुख प्रक्रियायें बताइये तथा सामाजिक परिवर्तन के कारणों (कारकों) का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में जैविकीय कारकों की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- माल्थस के सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्राकृतिक कारकों का वर्णन कीजिए। सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों व प्रणिशास्त्रीय कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्राणिशास्त्रीय कारक और सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में जनसंख्यात्मक कारक के महत्व की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारक बताइये तथा आर्थिक कारकों के आधार पर मार्क्स के विचार प्रकट कीजिए?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में आर्थिक कारकों से सम्बन्धित अन्य कारणों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक कारकों पर मार्क्स के विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में प्रौद्योगिकीय कारकों की भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सांस्कृतिक कारकों का वर्णन कीजिए। सांस्कृतिक विलम्बना या पश्चायन (Cultural Lag) के सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना या पश्चायन का सिद्धान्त प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक संरचना के विकास में सहायक तथा अवरोधक तत्त्वों को वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक संरचना के विकास में असहायक तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- केन्द्र एवं परिरेखा के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- प्रौद्योगिकी ने पारिवारिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित व परिवर्तित किया है?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में सूचना प्रौद्योगिकी की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- निम्नलिखित पुस्तकों के लेखकों के नाम लिखिए- (अ) आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन (ब) समाज
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी एवं विकास के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सूचना तंत्र क्रान्ति के सामाजिक परिणामों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- जैविकीय कारक का अर्थ बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक तथा सांस्कृतिक परिवर्तन में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के 'प्रौद्योगिकीय कारक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- जनसंचार के प्रमुख माध्यम बताइये।
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी की सामाजिक परिवर्तन में भूमिका बताइये।
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी क्या है?
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास से आप क्या समझते हैं? सामाजिक उद्विकास के विभिन्न स्तरों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास के विभिन्न स्तरों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सामाजिक उद्विकास के कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सामाजिक विकास से सम्बन्धित नीतियों का संचालन कैसे होता है?
- प्रश्न- विकास के अर्थ तथा प्रकृति को स्पष्ट कीजिए। बॉटोमोर के विचारों को लिखिये।
- प्रश्न- विकास के आर्थिक मापदण्डों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक विकास के आयामों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक प्रगति से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक प्रगति की सहायक दशाएँ कौन-कौन सी हैं?
- प्रश्न- सामाजिक प्रगति के मापदण्ड क्या हैं?
- प्रश्न- निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
- प्रश्न- क्रान्ति से आप क्या समझते हैं? क्रान्ति के कारण तथा परिणामों / दुष्परिणामों की विवेचना कीजिए |
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास एवं प्रगति में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विकास के उपागम बताइए।
- प्रश्न- भारतीय समाज मे विकास की सतत् प्रक्रिया पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- मानव विकास क्या है?
- प्रश्न- सतत् विकास क्या है?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के चक्रीय सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के रेखीय सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वेबलन के सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स के सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन क्या है? सामाजिक परिवर्तन के चक्रीय तथा रेखीय सिद्धान्तों में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिये।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त की आलोचना कीजिए।
- प्रश्न- अभिजात वर्ग के परिभ्रमण की अवधारणा क्या है?
- प्रश्न- विलफ्रेडे परेटो द्वारा सामाजिक परिवर्तन के चक्रीय सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- माल्थस के जनसंख्यात्मक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक निर्णायकवादी सिद्धान्त पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का सोरोकिन का सिद्धान्त एवं उसके प्रमुख आधारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- ऑगबर्न के सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- चेतनात्मक (इन्द्रियपरक ) एवं भावात्मक ( विचारात्मक) संस्कृतियों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सैडलर के जनसंख्यात्मक सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- हरबर्ट स्पेन्सर का प्राकृतिक प्रवरण का सिद्धान्त क्या है?
- प्रश्न- संस्कृतिकरण का अर्थ बताइये तथा संस्कृतिकरण में सहायक अवस्थाओं का वर्गीकरण कीजिए व संस्कृतिकरण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण की प्रमुख विशेषतायें बताइये। संस्कृतिकरण के साधन तथा भारत में संस्कृतिकरण के कारण उत्पन्न हुए सामाजिक परिवर्तनों का वर्णन करते हुए संस्कृतिकरण की संकल्पना के दोष बताइये।
- प्रश्न- भारत में संस्कृतिकरण के कारण होने वाले परिवर्तनों के विषय में बताइये।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण की संकल्पना के दोष बताइये।
- प्रश्न- पश्चिमीकरण का अर्थ एवं परिभाषायें बताइये। पश्चिमीकरण की प्रमुख विशेषता बताइये तथा पश्चिमीकरण के लक्षण व परिणामों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- पश्चिमीकरण के लक्षण व परिणाम बताइये।
- प्रश्न- पश्चिमीकरण ने भारतीय ग्रामीण समाज के किन क्षेत्रों को प्रभावित किया है?
- प्रश्न- आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन में संस्कृतिकरण एवं पश्चिमीकरण के योगदान का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण में सहायक कारक बताइये।
- प्रश्न- समकालीन युग में संस्कृतिकरण की प्रक्रिया का स्वरूप स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- पश्चिमीकरण सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया के रूप में स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- जातीय संरचना में परिवर्तन किस प्रकार से होता है?
- प्रश्न- स्त्रियों की स्थिति में क्या-क्या परिवर्त हुए हैं?
- प्रश्न- विवाह की संस्था में क्या परिवर्तन हुए स्पष्ट कीजिए?
- प्रश्न- परिवार की स्थिति में होने वाले परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक रीति-रिवाजों में क्या परिवर्तन हुए वर्णन कीजिए?
- प्रश्न- अन्य क्षेत्रों में होने वाले परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण के सम्बन्ध में विभिन्न समाजशास्त्रियों के विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के मार्ग में आने वाली प्रमुख बाधाओं की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण को परिभाषित करते हुए विभिन्न विद्वानों के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- डा. एम. एन. श्रीनिवास के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों को बताइए।
- प्रश्न- डेनियल लर्नर के अनुसार आधुनिकीकरण की विशेषताओं को बताइए।
- प्रश्न- आइजनस्टैड के अनुसार, आधुनिकीकरण के तत्वों को समझाइये।
- प्रश्न- डा. योगेन्द्र सिंह के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों को समझाइए।
- प्रश्न- ए. आर. देसाई के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों को व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण का अर्थ तथा परिभाषा बताइये? भारत में आधुनिकीकरण के लक्षण बताइये।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण के प्रमुख लक्षण बताइये।
- प्रश्न- भारतीय समाज पर आधुनिकीकरण के प्रभाव की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- लौकिकीकरण का अर्थ, परिभाषा व तत्व बताइये। लौकिकीकरण के कारण तथा प्रभावों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- लौकिकीकरण के प्रमुख कारण बताइये।
- प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता क्या है? धर्मनिरपेक्षता के मुख्य कारकों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- वैश्वीकरण क्या है? वैश्वीकरण की सामाजिक सांस्कृतिक प्रतिक्रिया की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत पर वैश्वीकरण और उदारीकरण के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक व्यवस्था पर प्रभावों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में वैश्वीकरण की कौन-कौन सी चुनौतियाँ हैं? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित शीर्षकों पर टिप्पणी लिखिये - 1. वैश्वीकरण और कल्याणकारी राज्य, 2. वैश्वीकरण पर तर्क-वितर्क, 3. वैश्वीकरण की विशेषताएँ।
- प्रश्न- निम्नलिखित शीर्षकों पर टिप्पणी लिखिये - 1. संकीर्णता / संकीर्णीकरण / स्थानीयकरण 2. सार्वभौमिकरण।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण के कारकों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के किन्हीं दो दुष्परिणामों की विवचेना कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकता एवं आधुनिकीकरण में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- एक प्रक्रिया के रूप में आधुनिकीकरण की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण की हालवर्न तथा पाई की परिभाषा दीजिए।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के दुष्परिणाम बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन से आप क्या समझते हैं? सामाजिक आन्दोलन का अध्ययन किस-किस प्रकार से किया जा सकता है?
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन का अध्ययन किस-किस प्रकार से किया जा सकता है?
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के गुणों की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के सामाजिक आधार की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन को परिभाषित कीजिये। भारत मे सामाजिक आन्दोलन के कारणों एवं परिणामों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- "सामाजिक आन्दोलन और सामूहिक व्यवहार" के सम्बन्धों को समझाइये |
- प्रश्न- लोकतन्त्र में सामाजिक आन्दोलन की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलनों का एक उपयुक्त वर्गीकरण प्रस्तुत करिये। इसके लिये भारत में हुए समकालीन आन्दोलनों के उदाहरण दीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के तत्व कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के विकास के चरण अथवा अवस्थाओं को बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के उत्तरदायी कारणों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के विभिन्न सिद्धान्तों का सविस्तार वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- "क्या विचारधारा किसी सामाजिक आन्दोलन का एक अत्यावश्यक अवयव है?" समझाइए।
- प्रश्न- सर्वोदय आन्दोलन पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सर्वोदय का प्रारम्भ कब से हुआ?
- प्रश्न- सर्वोदय के प्रमुख तत्त्व क्या है?
- प्रश्न- भारत में नक्सली आन्दोलन का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में नक्सली आन्दोलन कब प्रारम्भ हुआ? इसके स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन के प्रकोप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन की क्या-क्या माँगे हैं?
- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन की विचारधारा कैसी है?
- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन का नवीन प्रेरणा के स्रोत बताइये।
- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन का राजनीतिक स्वरूप बताइये।
- प्रश्न- आतंकवाद के रूप में नक्सली आन्दोलन का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- "प्रतिक्रियावादी आंदोलन" से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न - रेनांसा के सामाजिक सुधार पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'सम्पूर्ण क्रान्ति' की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- प्रतिक्रियावादी आन्दोलन से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के संदर्भ में राजनीति की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में सरदार वल्लभ पटेल की भूमिका की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- "प्रतिरोधी आन्दोलन" पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- उत्तर प्रदेश के किसी एक कृषक आन्दोलन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- कृषक आन्दोलन क्या है? भारत में किसी एक कृषक आन्दोलन की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- श्रम आन्दोलन की आधुनिक प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारत में मजदूर आन्दोलन के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'दलित आन्दोलन' के बारे में अम्बेडकर के विचारों की विश्लेषणात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत में दलित आन्दोलन के लिये उत्तरदायी प्रमुख कारकों की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- महिला आन्दोलन से क्या तात्पर्य है? भारत में महिला आन्दोलन के लिये उत्तरदायी प्रमुख कारणों की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- पर्यावरण संरक्षण के लिए सामाजिक आन्दोलनों पर एक लेख लिखिये।
- प्रश्न- "पर्यावरणीय आंदोलन" के सामाजिक प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सामाजिक परिवर्तन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी कीजिये। -
- प्रश्न- कृषक आन्दोलन के प्रमुख कारणों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- श्रम आन्दोलन के क्या कारण हैं?
- प्रश्न- 'दलित आन्दोलन' से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- पर्यावरणीय आन्दोलनों के सामाजिक महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- पर्यावरणीय आन्दोलन के सामाजिक प्रभाव क्या हैं?